अंधेरे से उजाले की ओर

अंधेरे से उजाले की ओर

 

वर्तमान युग की ‘पूर्ण भौतिकवादी’ सभ्यता की अत्यंत तेज़ व चमकीली रौशनी के चकाचौंध और भोग-विलास की मादकता में, आमतौर पर जीवन व्यतीत करने का सही रास्ता निगाह से ओझल हो गया है; यहाँ तक कि लोग ‘सही रास्ता’ की ज़रूरत ही महसूस नहीं करते। जिस भी रास्ते पर चलने को मन खींच लाया, बस उसी पर चल पड़े। वह रास्ता कामयाबी की मंज़िल पर पहुँचाएगा या तबाही की मंज़िल पर, इसकी कोई चिन्ता नहीं; मानो इन्सान इन्सान नहीं, बे-नकेल जन्तु है। लेकिन ईश्वर ने मनुष्यों की सृष्टि में चेतना और विवेक का गुण भी रखा है। इस गुण को प्रदूषित, जर्जर या विनष्ट कर देने वाले अवगुणों की पूरी लपेट में इन्सान आ न चुका हो तो उसकी अन्तरात्मा सत्य मार्ग को पाने के लिए व्याकुल अवश्य रहती है, और प्रायः मनुष्य को सत्य की खोज के लिए प्रयत्नशील बनाती रहती है।


यह एक वैश्विक तथ्य (Global Phenomenon) है तथा भारतवर्ष भी इसका एक विशाल अनुभूति-क्षेत्र है। यह एक सत्य है कि इन्सान के शारीरिक अस्तित्व को तो बहुत सारे दबावों, बंधनों, ज़ंजीरों में जकड़ा जा सकता तथा ज़ोर-ज़बर्दस्ती द्वारा बहुत सारे कामों, फै़सलों और परिवर्तनों से रोका जा सकता है लेकिन उसकी बुद्धि-विवेक, चेतना और अन्तरात्मा को बलपूर्वक उसके किसी पसन्दीदा मार्ग पर चल पड़ने से रोका नहीं जा सकता।


विश्व के विभिन्न भागों की तरह भारतवर्ष में भी 1400 वर्षों से सन्मार्ग की खोज, तथा सन्मार्ग अपना लेने का क्रम जारी है। इस आरोप के विपरीत, कि इस्लाम तलवार से, ज़ोर-ज़बर्दस्ती द्वारा फैला, वर्षों-वर्षों से (जबकि इस्लाम के पास कोई ‘तलवार’ सिरे से है ही नहीं) दुनिया के लगभग सभी देशों की तरह हमारे धर्मप्रधान, तथा आध्यात्मिकता का एक लंबा इतिहास रखने वाले प्रिय देश ‘भारतवर्ष’ में भी लोग सन्मार्ग की खोज करने, तथा अंधेरे से उजाले की ओर चल पड़ने का निर्णय करते रहे हैं। यह हमारे देश और देशवासियों का सौभाग्य है। अगले पन्नों में इस परिवर्तन और क्रान्तिकारिता के कुछ वृत्तांत उल्लिखित किए जा रहे हैं:

  • 8802281236

  • ई मेल : islamdharma@gmail.com