भोजन संकट का मूल कारण क्या है?

भोजन संकट का मूल कारण क्या है?

इंसानी आबादी लंबे समय से एक बड़ी समस्या के रूप में देखी जाती रही है। बताया जा रहा है कि 15/ नवंबर को दुनिया की आबादी 8 अरब हो गई। लेकिन देखने की बात यह है कि दुनिया में ऐसे कई देश हैं जहां आबादी बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। नागरिकों को इस के लिए तरह तरह की सुविधाएं दी जाती हैं। पर ऐसे भी देश हैं जो आबादी के बढ़ने को समस्या मानते हैं। ख़ुद हमारे देश में भी आबादी के बढ़ने को चिंता का विषय मानने का रुझान आम है। बड़े दावे से यह बात कही जा रही है कि 2023 में हमारा देश दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बन जाए गा। दावे तो इस से भी आगे के किए जा रहे हैं कि 50-80 साल बाद आबादी इतनी और इतनी हो जाए गी। इसके लिए ‘आबादी धमाका’ की इस्तेलाह भी बिला तकल्लुफ़ इस्तेमाल कर ली जाती है। इस मामले में मज़हब को शामिल करने की भी कोशिश की जाती है। इस मुद्दे पर एक ख़ास मज़हब के मानने वालों को भी निशाना बनाया जाता है। जनमत को उनके खिलाफ करने पर ज़ोर दिया जाता है। इस पर राजनीति करने की कोशिश की जाती है और इस बात पर ज़ोर दिया जाता है कि 'सभी पर लागू होने वाली आबादी पालिसी' होनी चाहिए। यह बात कभी खुले शब्दों में, तो कभी इशारों में कही जाती है। राजनीतिक वजहों के अलावा भोजन और ज़िंदगी के संसाधन भी आबादी में बढ़ोतरी पर चिंता की बड़ी वजह हैं। इस के कम पड़ जाने या ख़त्म हो जाने का डर दुनियावी एतबार से हमेशा लोगों को परेशान करता है। ज़िंदगी के एक ख़ास नज़रये से जुड़े और मज़हबी ज़ेहन रखने वाले लोगों में भी इस संबंध मे चिंता पाई जाती है। हाल के दिनों में, आबादी पर बहुत ज़ोर शोर से बातें हुई हैं। इस बीच, एक वैचारिक संगठन के स्टेज से आबादी को खाने-पीने की चीज़ों के हिसाब से ख़तरा बताते हुए कहा गया है कि "बेक़ाबू आबादी एक ऐसी समस्या है जो भोजन सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा कर सकती है"। ख़त्म हो जाने और ख़र्च हो जाने का डर इंसान को हमेशा सताता रहता है और इस की वजह से वह हर ग़लत, अमानवीय और ग़ैर फितरी काम कर बैठता है, भले ही इंसानों पर अत्याचार करना और हत्या करना ही क्यों न हो। इंसान को पैदा करने वाले ने इस सत्य को इस तरह बताया है कि "गरीबी के डर से अपने बच्चों को मत मार डालो, तुमको और उन्हें हम ही रोज़ी देते हैं" (इसरा: 31)। ख़ौफ की इस हालत को एक दूसरी जगह पर इस तरह बताया गया है कि "यदि तुम मेरे रब की रहमतों के खजानों के मालिक बन जाते, तो तुम उस वक़्त भी उस के खर्च हो जाने के डर से उस को रोके रखते" (इसरा: 100)।
यह देखी जाने वाली बात है कि क्या बड़ी आबादी सच में खाने-पीने की चीज़ों, इंसानों की ज़रुरत के सामानों, संसाधनों के लिए खतरा पैदा करती है या ज़्यादा आबादी ज़्यादा मौक़ा पैदा करती है। ‘आपदा’ में ‘अवसर’  हमारे देश की पॉलिसी का हिस्सा है। यहां की आबादी में नौजवानों की बड़ी तादाद पर फख़्र किया जाता रहा है। कहा जाता रहा है कि हमारे नौजवान दुनिया की ज़रूरत हैं तो हमारे लिए पूंजी हैं। यह निराधार नहीं है, इस वक़्त पूरी दुनिया में सबसे अधिक नौजवान हमारे देश में पाए जाते हैं। उनके पास ज्ञान भी है और हुनर भी है। देश के बाहर इनकी डिमांड होने लेकिन अपने घर में इनकी क़द्र ना होने की तमाम शिकायतों के बावजूद सच्चाई यह है कि देश में भी इनकी क़द्र है और इनके हुनर से यहां भी फायदा उठाया जाता है। देश में टेक्नोलॉजी का जिस तेजी से विकास हो रहा है इस में इन नौजवानों का हिस्सा बहुत ज़्यादा है। हर दिन कोई न कोई नई चीज़ सामने आ जाती है। फिर बाजार में घरेलू उत्पादों की मौजूदगी की वजह से आम लोग भी आसानी से कम दाम में अपनी ज़रुरत की चीज़ें हासिल कर लेते हैं जो ‘बरांडेड’ कंपनियां महंगे दामों में उपलब्ध कराती हैं। इस तरह नौजवान चाहे देश में काम कर रहे हों या देश से बाहर, दोनों ही हालतों में देश की माली हालत को फायदा पहुंच रहा है।
अगर हम भोजन, खाने-पीने की चीज़ों और ज़िंदगी के संसाधनों की बात करें तो सबसे पहले यह देखना चाहिए कि दुनिया में इंसानों समेत सभी जानदारों के भोजन और ज़िंदगी की ज़रूरतें कहां से पूरी होती हैं। स्पष्ट है कि वे धरती से होती हैं और धरती को किस ने बनाया? धरती को बनाया है उसी हस्ती ने जिसने इंसानों को जन्म दिया है और जिसने पूरे ब्रह्मांड की रचना की है। “उसने (धरती (ज़मीन) को बनाने के बाद) उपर से उस पर पहाड़ जमा दिए और उस में बरकतें रख दीं और पूरे अंदाज़े के मुताबिक उस के भीतर सब मांगने वालों के लिए सभी की मांग और आवश्यकता के हिसाब से भोजन उपलब्ध करा दिया” (फ़ुसिलत: 10)। इंसानों को पैदा करने वाली हस्ती को ठीक-ठीक पता है कि कब किस चीज़ की ज़रुरत होगी और कितनी चाहिए होगी। इसी के अनुसार धरती की चीज़ें सामने आती हैं और इंसान अपनी आवश्यकता के अनुसार ही उनके बारे में जान पाता है। धरती की यह क्षमता उस पर जानदारों  के वजूद में आने के समय से ही सामने आने लगी थी। जब जो चीज़ चाहिए थी वह सामने आ गई और जितनी चाहिए थी उतनी ही सामने आई। आज के ज़माने में इंसान अपने ज्ञान और दिमाग के बारे में चाहे जितने भी दावे करे, वह उतना ही जान पाया है जितना अल्लाह ने चाहा है “तुम्हें जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत थोड़ा है”(इस्रा:85)।
जब इस दुनिया में जीवन शुरू हुआ तो इंसान धरती के बारे में क्या जानता था?  धरती का भीतरी भाग तो दुर वह उस के बाहरी भाग के बारे में बहुत कम जानता था।  जरूरतें बढ़ती गईं, उनके अनुसार ज्ञान भी बढ़ता गया, उसी हिसाब से चीजें भी पैदा होने लगीं और धरती से निकलने लगीं। आज धरती में जो चीजें मिल रही हैं, पैदा की जा रही हैं और उस से बाहर आ रही हैं, क्या पहले लोग उन के बारे में जानते थे और क्या वे वह पहले भी मौजूद थीं, बिल्कुल नहीं। आज भी हम धरती, ब्रह्मांड के अंदर और बाहर की हक़ीकत को कितना जानते हैं। इंसानों की तहक़ीक और खोज भी आख़री नहीं होती है, उस में कमी, कजी होती है और वह बदलती रहती है। यहाँ तक कि बुद्धिमान, ज्ञानी और वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हम धरती के बारे में जो जानते हैं, वह उन पहलुओं की तुलना में कुछ भी नहीं है जिन्हें हम नहीं जानते हैं। कुछ महीने पहले वैज्ञानिकों द्वारा की गई एक नई खोज में धरती के केंद्र में स्थित सॉलिड इनर कोर (Solid Inner Core) के अंदर एक और सतह की खोज की गई, जिसके बारे में कोई नहीं जानता। यह सतह कैसे बनी, किस चीज से बनी, इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह भी कोई नहीं जानता है। ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी से जुड़े जो स्टीफेंसन (Jo Stephenson)  का कहना है कि “इनर-इनर कोर का पता चला है। यह सिर्फ लोहे की गर्म गेंद नहीं है, यह कुछ और है, लेकिन उसके बारे में हमें ज़्यादा पता नहीं है”। वैज्ञानिकों के अनुसार यह अभी भी एक रहस्य है।
खाने-पीने की चीज़ों और ज़िंदगी के संसाधनों के हवाले से मौजूदा स्थिति का ताल्लुक़ पैदावार और उपलब्धता से नहीं है। इंसानों को पैदा करने वाली हस्ती ने यह साफ कर दिया है कि उसने धरती में ‘बरकतें’ रखदी हैं। इसके भीतर सभी जरूरतमंदों के लिए ‘हर एक की मांग और आवश्यकता’ के हिसाब से ठीक-ठीक भोजन का सामान दिया गया है। क़ुरआन के मुताबिक़, समाज में कमी और ज़्यादती, अभाव और बहुतायत लोगों के अपने कर्मों की वजह से है। यूनाइटेड नेशंस और विभिन्न संगठनों की तरफ से समय-समय पर छपने वाली रिपोर्टों से यह बात और भी वाज़ह हो जाता है। यूनाइटेड नेशंस के इंटरनेशनल एजेंसी फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (आईएफएडी) के अनुसार, 2020 में दुनिया में 7 करोड़ 20 लाख से 8 करोड़ 11 लाख लोगों को भूख का सामना करना पड़ा। इस की जो वजहें बताई गईं उन में पैदावार के अलावा वैश्विक झगड़े, कटाई,प्रोसेसिंग,ढोलाई, आपूर्ति, संसाधन की फराहमी, मार्केटिंग, खपत, ना जानना, ग़लत रीति-रिवाज और खाद्य सुरक्षा के मुद्दे शामिल हैं। इसके अलावा  यूनाइटेड नेशंस के अनुमान के अनुसार  दुनिया में हर साल लगभग 1.3 बिलियन टन भोजन बर्बाद होता है। यह दुनिया में खाने-पीने की चीज़ो की पैदावार का एक तिहाई है। यह सिर्फ खाने-पीने की चीज़ों से महरूम व वंचित लोगों ही नहीं बल्कि उन से भी चार गुना ज़्यादा भूखे लोगों का पेट भरने के लिए काफी है। इसका मतलब साफ है कि इस समय जो भोजन पैदा हो रहा है वह बढ़ती आबादी का रोना रोए जाने के बावजूद दुनिया में मौजूद आबादी की ज़रूरत से ज़्यादा है। इस के बावजूद, खाने-पीने की चीज़ों के बर्बाद होने की वजह से दुनिया में 81 करोड़ से ज़्यादा लोग भूख के शिकार हैं। इस हालत में ज़रूरत किस चीज़ की है? ज़रुरत है कि इंसानों को जन्म देने वाली और पूरे ब्रह्मांड को बनाने वाली हस्ती की बातों पर ध्यान दिया जाए कि “क्या तुम लोग नहीं देखते कि अल्लाह ने धरती और आकाश की सभी चीजों को तुम्हारे काम में लगा रखा है और तुम्हें अपनी खुली और छुपी नेमतें भरपूर दे रखी हैं” (लुक़मान: 20)  और उन लोगों में शामिल ना हुआ जाए जिनके बारे में खुद इंसानों को पैदा करने वाली हस्ती ने कहा है कि “कुछ लोग अल्लाह के विषय में बिना किसी ज्ञान, बिना किसी मार्गदर्शन और बिना किसी रौशन किताब के झगड़ा करते हैं” (लुकमान: 20)।


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