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ग़लत फ़हमियों का निवारण

मुंशी प्रेमचंद (प्रसिद्ध साहित्यकार)

 ‘‘...जहाँ तक हम जानते हैं, किसी धर्म ने न्याय को इतनी महानता नहीं दी जितनी इस्लाम ने। ...इस्लाम की बुनियाद न्याय पर रखी गई है। वहाँ राजा और रंक, अमीर और ग़रीब, बादशाह और फ़क़ीर के लिए ‘केवल एक' न्याय है। किसी के साथ रियायत नहीं किसी का पक्षपात नहीं। ऐसी सैकड़ों रिवायतें पेश की जा सकती है जहाँ बेकसों ने बड़े-बड़े बलशाली आधिकारियों के मुक़ाबले में न्याय के बल से विजय पाई है। ऐसी मिसालों की भी कमी नहीं जहाँ बादशाहों ने अपने राजकुमार, अपनी बेगम, यहाँ तक कि स्वयं अपने तक को न्याय की वेदी पर होम कर दिया है। संसार की किसी सभ्य से सभ्य जाति की न्याय-नीति की, इस्लामी न्याय-नीति से तुलना कीजिए, आप इस्लाम का पल्ला झुका हुआ पाएँगे...।''‘‘...जिन दिनों इस्लाम का झंडा कटक से लेकर डेन्युष तक और तुर्किस्तान से लेकर स्पेन तक फ़हराता था मुसलमान बादशाहों की धार्मिक उदारता इतिहास में......

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इस्लाम का ही अनुपालन क्यों?

प्रश्न : तमाम धर्म मूल रूप से अपने मानने वालों को अच्छी और भली बातों की ही शिक्षा देते हैं तो फिर आखि़र केवल इस्लाम के अनुपालन पर ही बल क्यों दिया जाए। अन्य किसी भी धर्म का अनुपालन क्यों न किया जाए?उत्तर :1. इस्लाम और अन्य धर्मों के बीच भारी अन्तर हैसभी धर्म मूलरूप से अपने मानने वालों को भलाई का रास्ता अपनाने और बुराई से दूर रहने की शिक्षा देते हैं। लेकिन इस्लाम का मामला इससे बढ़कर है। वह हमें भलाई को अपनाने और बुराई की जड़ों को अपने निजी और सामाजिक जीवन से उखाड़ फेंकने का व्यावहारिक तरीक़ा बताता है। इस्लाम मानव-स्वभाव और इंसान की सामाजिक पेचीदगियों को अपनी तवज्जोह का केन्द्र बनाता है। इस्लाम धर्म स्वयं जगत-स्वामी की ओर से मार्गदर्शन के रूप मंस आया है। इसी लिए इस्लाम को दीने-फि़तरत अर्थात् प्राकृतिक धर्म भी कहा जाता है।2. उदाहरण : इस्लाम हमें आदेश देता है कि......

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औरतों के लिए पर्दा

 प्रश्न : इस्लाम औरतों को पर्दे में रखकर उनका अपमान क्यों करता है?उत्तर : इस्लाम में औरतों की जो स्थिति है, उसपर सेक्यूलर मीडिया का ज़बरदस्त हमला होता है। वे पर्दे और इस्लामी लिबास को इस्लामी क़ानून में स्त्रियों की दासता के तर्क के रूप में पेश करते हैं। इससे पहले कि हम पर्दे के धार्मिक निर्देश के पीछे मौजूद कारणों पर विचार करें, इस्लाम से पूर्व समाज में स्त्रियों की स्थिति का अध्ययन करते हैं।1.  भूतकाल में स्त्रियों का अपमान किया जाता और उनका प्रयोग केवल काम-वासना के लिए किया जाता था।इतिहास से लिए गए निम्न उदाहरण इस तथ्य की पूर्ण रूप से व्याख्या करते हैं कि आदिकाल की सभ्यता में औेरतों का स्थान इस सीमा तक गिरा हुआ था कि उनको प्राथमिक मानव सम्मान तक नहीं दिया जाता था-(क) बेबिलोनिया सभ्यताऔरतें अपमानित की जातीं थीं, और बेबिलोनिया के क़ानून में उनको हर......

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बहु-पत्नीत्व (Polygyny)

 प्रश्न : मुसलमानों को एक से अधिक पत्नी रखने की इजाज़त क्यों है? अर्थात् इस्लाम एक से अधिक विवाह की अनुमति क्यों देता है?उत्तर : बहु-विवाह की परिभाषा-इसका अर्थ है ऐसी व्यवस्था जिसके अनुसार व्यक्ति की एक से अधिक पत्नी अथवा पति हों। बहु-विवाह दो प्रकार के होते हैं-1. एक पुरुष द्वारा एक से अधिक पत्नी रखना। (Polygyny)2. एक स्त्री द्वारा एक से अधिक पति रखना। (Polyandry)इस्लाम में इस बात की इजाज़त है कि एक पुरुष एक सीमा तक एक से अधिक पत्नी रख सकता है जबकि स्त्री के लिए इसकी इजाज़त नहीं है कि वह एक से अधिक पति रखे।अब इस प्रश्न पर विचार करते हैं कि इस्लाम में एक आदमी को एक से अधिक पत्नी रखने की इजाज़त क्यों है?1. पवित्र क़ुरआन ही संसार की धार्मिक पुस्तकों में एकमात्र पुस्तक है जो कहती है ‘‘केवल एक औरत से विवाह करो।''संसार में क़ुरआन ही ऐसी एकमात्र धार्मिक पुस्तक है जिसमें यह बात कही गई......

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क्या इस्लाम तलवार से फैला?

 प्रश्न : इस्लाम को शान्ति का धर्म कैसे कहा जा सकता है, जबकि यह तलवार से फैला है?उत्तर : कुछ गै़र-मुस्लिम भाइयों की यह आम शिकायत है कि संसार भर में इस्लाम के मानने वालों की संख्या लाखों में भी नहीं होती यदि इस धर्म को बलपूर्वक नहीं फैलाया गया होता। निम्न बिन्दु इस तथ्य को स्पष्ट कर देंगे कि इस्लाम की सत्यता, दर्शन और तर्क ही है जिसके कारण वह पूरे विश्व में तीव्र गति से फैला, न कि तलवार से।1. इस्लाम का अर्थ शान्ति हैइस्लाम मूल शब्द ‘सलाम' से निकला है जिसका अर्थ है ‘शान्ति'। इसका दूसरा अर्थ है अपनी इच्छाओं को अपने पालनहार ख़ुदा के हवाले कर देना। अतः इस्लाम शान्ति का धर्म है जो सर्वोच्च स्रष्टा अल्लाह के सामने अपनी इच्छाओं को हवाले करने से प्राप्त होती है।2. शान्ति को स्थापित करने के लिए कभी-कभी बल-प्रयोग किया जाता हैइस संसार का हर इंसान शान्ति एवं सद्भाव के......

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एक से अधिक पति रखना (Polyandry)

 प्रश्न : यदि एक पुरुष को एक से अधिक पत्नी रखने की इजाज़त है तो इसका क्या कारण है कि इस्लाम औरत को एक से अधिक पति रखने की अनुमति नहीं देता?उत्तर : कुछ लोग, जिनमें मुसलमान भी शामिल हैं, इस बात पर सवाल उठाते हैं कि इस्लाम मर्द को तो कई पत्नी रखने की छूट देता है जबकि यह अधिकार औरत को नहीं देता है।सबसे पहली बात तो यह है कि इस्लामी समाज न्याय और समानता पर आधारित है। अल्लाह ने स्त्री एवं पुरुष को समान रूप से बनाया है, परंतु भिन्न-भिन्न क्षमताएँ और जि़म्मेदारियाँ रखी हैं। स्त्री एवं पुरुष मानसिक एवं शारीरिक रूप से भिन्न हैं, उनकी भूमिका और जि़म्मेदारियाँ अलग-अलग हैं। स्त्री और पुरुष दोनों इस्लाम में समान (Equal) हैं परंतु एक जैसे (Indentical) नहीं।क़ुरआन की सूरा निसा अध्याय 4, आयत 22 से 24 में उन स्त्रियों की सूची दी गई है जिनसे विवाह नहीं किया जा सकता। और सूरा निसा अध्याय 4 आयत 24 में......

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सूअर के मांस का हराम (निषेध) होना

प्रश्न : इस्लाम में सूअर का मांस खाना क्यों मना है?उत्तर : नीचे, इस्लाम में सूअर का मांस हराम होने के कुछ ख़ास और अहम पहलुओं पर प्रकाश डाला जा रहा है :1. सूअर के मांस का कु़रआन में निषेधक़ुरआन में कम से कम चार जगहों पर सूअर के मांस के प्रयोग को हराम और निषेध ठहराया गया है। देखें पवित्र क़ुरआन 2:173, 5:3, 6:145 और 16:115पवित्र क़ुरआन की निम्न आयत इस बात को स्पष्ट करने के लिए काफ़ी है कि सूअर का मांस क्यों हराम किया गया है :‘‘तुम्हारे लिए (खाना) हराम (निषेध) किया गया मुर्दार, ख़ून, सूअर का मांस और वह जानवर जिस पर अल्लाह के अलावा किसी और का नाम लिया गया हो।''  (क़ुरआन, 5:3)2. बाइबिल में सूअर के मांस का निषेधबाइबिल में सूअर के मांस के निषेध का उल्लेख लैव्य व्यवस्था (Book of Leviticus) में हुआ है :‘‘सूअर जो चिरे अर्थात् फटे खुर का होता है, परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिए वह तुम्हारे लिए अशुद्ध......

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जानवरों को ज़बह करने का इस्लामी...

प्रश्न : मुसलमान जानवरों को निर्दयता से धीरे-धीरे उनको कष्ट देकर क्यों ज़बह करते हैं?उत्तर : जानवरों को ज़बह करने के इस्लामी तरीके़ पर जिसे ‘ज़बीहा' कहा जाता है, बहुत से लोगों ने आपत्ति की है। इस संबंध में हम निम्न बिन्दुओं पर विचार करते हैं जिनसे यह तथ्य सिद्ध होता है कि ज़बह करने का इस्लामी तरीक़ा मानवीय ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी श्रेष्ठ है-1. जानवर को ज़बह करने का इस्लामी तरीक़ाइस्लामी तरीके़ से जानवर को ज़बह करने हेतु निम्न शर्तें पूरी करना आवश्यक है-जानवर को तेज़ छुरी से ज़बह करना चाहिए ताकि उसे कम से कम पीड़ा हो।जानवर को गले की तरफ़ से ज़बह करना चाहिए इस प्रकार कि हलक़ (कण्ठ, Throat) और गर्दन की ख़ूनवाली नसें कट जाएँ, मगर गर्दन के ऊपर का हिस्सा, जिसका संबंध रीढ़ की हड्डी से है, न कटे। सिर को अलग करने से पहले ख़ून को पूर्णरूप से बहने देना चाहिए......

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गवाहों के बीच बराबरी का मामला

प्रश्न : दो औरतें गवाही में एक पुरुष के बराबर क्यों हैं? उत्तर : यह बात सही नहीं है कि हमेशा दो औरतों की गवाही एक पुरुष ही के बराबर होती है। यह केवल कुछ मामलों में है। क़ुरआन में कम से कम पाँच ऐसी आयतें हैं जिनमें गवाहों की गवाही का उल्लेख है। लेकिन उनमें औरतों और पुरुषों में अन्तर की बात नहीं कही गई है। क़ुरआन की सूरा बक़रा अध्याय 2 की आयत 282 जो क़ुरआन की सबसे बड़ी आयत है, उसमें माल और लेन-देन संबंधी आदेश दिए गए हैं। उस आयत का अनुवाद यह है—‘‘ऐ ईमान लाने वालो! जब किसी निश्चित अवधि के लिए आपस में क़र्ज़ का लेन-देन करो तो उसे लिख लिया करो......और अपने पुरुषों में से दो गवाहों को गवाह बना लो, यदि दो पुरुष न हों तो एक पुरुष और दो स्त्रियाँ जिन्हें तुम गवाह के लिए पसंद करो गवाह हो जाएँ ताकि एक कन्फ्यूज़ हो जाए तो दूसरी उसे याद दिला दे।’’ (क़ुरआन, 2:282)यह आयत माल के लेन-देन......

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मुसलमान काबा की पूजा करते हैं

 प्रश्न : जब इस्लाम मूर्तिपूजा के विरुद्ध है, फिर इसका क्या कारण है कि मुसलमान अपनी नमाज़ में काबा की ओर झुकते हैं और उसकी पूजा करते हैं?उत्तर : ‘काबा’ किबला है अर्थात् वह दिशा जिधर मुसलमान नमाज़ के समय अपने चेहरे का रुख़ करते हैं। यह बात सामने रहनी चाहिए कि यद्यपि मुसलमान अपनी नमाज़ों में काबा की तरफ़ अपना रुख़ करते हैं लेकिन वे काबा की पूजा नहीं करते। मुसलमान एक अल्लाह के सिवा किसी की पूजा नहीं करते और न ही किसी के सामने झुकते हैं।क़ुरआन में कहा गया है—‘‘हम तुम्हारे चेहरों को आसमान की ओर उलटते-पलटते देखते हैं। तो क्या हम तुम्हारे चेहरों को एक किब्ले की तरफ़ न मोड़ दें, जो तुम्हें प्रसन्न कर दे। तुम्हें चाहिए कि तुम जहाँ कहीं भी रहो अपने चेहरों को उस पवित्र मस्जिद की तरफ़ मोड़ लिया करो।’’ (क़ुरआन, 2:144)1. इस्लाम एकता की बुनियादों को मज़बूत करने में......

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मुसलमान रूढ़िवादी और आतंकवादी होते...

 प्रश्न : अधिकतर मुसलमान रूढ़िवादी और आतंकवादी क्यों होते हैं?उत्तर : धर्म या विश्व-राजनीति से संबंधित चर्चाओं में यह प्रश्न प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों पर उछाला जाता है। मीडिया के किसी भी साधनों में मुसलमानों को बख़्शा नहीं जाता और इस्लाम तथा मुसलमानों के संबंध में बड़े पैमाने पर ग़लतफहमियाँ फैलाई जाती हैं,उन्हें कट्टरवादी के रूप में दर्शाया जाता है। वास्तव में ऐसी ग़लत जानकारियाँ और झूठे प्रचार अकसर मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा और पक्षपात का कारण बनते हैं। इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण अमेरिकी मीडिया द्वारा मुसलमानों के विरुद्ध चलाई जाने वाली मुहिम है जो ओकलाहोमा बम धमाके के बाद चलाई गई। प्रेस ने तुरंत यह एलान कर दिया कि इस धमाके के पीछे ‘मध्य पूर्वी षडयंत्र' काम कर रहा है। बाद में अमेरिकी सेना का एक जवान इस कांड में दोषी पाया गया।अब हम......

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इस्लाम की शिक्षाओं और मुसलमानों के...

प्रश्न : अगर इस्लाम दुनिया का सबसे अच्छा धर्म है तो आखि़र बहुत से मुसलमान बेईमान, बेभरोसा क्यों हैं और धोखाधड़ी और रिश्वत और घूसख़ोरी में क्यों लिप्त हैं?उत्तर :1. मीडिया इस्लाम की ग़लत तस्वीर पेश करता है(क) इस्लाम बेशक सबसे अच्छा धर्म है लेकिन असल बात यह है कि आज मीडिया की नकेल कुछ उन पश्चिम वालों के हाथों में है, जो इस्लाम से द्वेष व शत्रुता रखते हैं। मीडिया बराबर इस्लाम के विरुद्ध बातें प्रकाशित और प्रसारित करता है। वह या तो इस्लाम के विरुद्ध ग़लत सूचनाएँ उपलब्ध कराता है और इस्लाम से संबंधित ग़लत-सलत उद्धरण देता है या फिर किसी बात को जो मौजूद हो ग़लत दिशा देता और उछालता है।(ख) अगर कहीं बम फटने की कोई घटना होती है तो बग़ैर किसी प्रमाण के सबसे पहले किसी मुसलमान को दोषी ठहरा दिया जाता है। समाचार पत्रों में बड़ी-बड़ी सुर्खियों में उसे प्रकाशित किया जाता है। फिर ......

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