गरीबी और भुखमरी

गरीबी और भुखमरी

वैश्विक भूख सूचकांक 2021 के अनुसार हमारा देश पिछले एक वर्ष में 116 देशों की सूची में 94 से गिरकर 101वें स्थान पर आ गया है। कोरोना की महामारी तीन वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था और लोगों की आर्थिक स्थिति में गिरावट का बड़ा कारण बनी है। परन्तु ग़रीबी और भुखमरी का सबसे बड़ा कारण लोग देश में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसँख्या को मानते हैं और समय-समय पर इसको नियंत्रित करने का क़ानून बनाने की मांग उठाते रहते हैं। 
देश की जनसँख्या इस समय 140 करोड़ का आंकड़ा पार करने की ओर अग्रसर है और यह सम्भावना भी देखी जा रही है कि भारत अपने पड़ोसी चीन को पछाड़ता हुआ प्रथम स्थान प्राप्त कर लेगा। 1975 से ही इसपर नियंत्रण के अनेकों प्रयत्न किए गए हैं परन्तु कोई सफ़लता हाथ नहीं लगी है। ऐसे में कोई नया प्रयत्न कितना सफ़ल हो पाएगा यह तो समय ही बताएगा। 
एक प्रश्न है जिसपर कम ही विचार किया जाता है। गरीबी का असल कारण क्या वास्तव जनसँख्या वृद्धि ही है? विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार गरीबी का मुख्य कारण संसाधनों का असंतुलित वितरण है, न कि जनसँख्या। रिपोर्ट बताती है कि भारत के 1% पूंजीपतियों ने 22% राष्ट्रीय आय पर तथा 10% ने 57% पर क़ब्ज़ा कर रखा है। यह और इसी प्रकार के अन्य आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि ग़रीबी और भुखमरी बढ़ने का असल कारण जनसँख्या नहीं, पूंजीवाद है। समस्या कहीं और है और दोष जनसँख्या को दिया जाता है। 
सबसे अधिक जनसँख्या वाले देश चीन ने ‘एक परिवार एक संतान’ की पालिसी के दुष्परिणाम को देखते हुए इसको समाप्त कर दिया और आज अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सन्तान पैदा करने को प्रोत्साहित कर रहा है। रूस, जापान, फ्रांस, जर्मनी आदि देश बढ़ती हुई वृद्ध आबादी से परेशान जनसँख्या बढाने का प्रयत्न कर रहे हैं। दक्षिण कोरिया के बारे में अनुमान है कि यदि वहां जनसँख्या इसी तेज़ी से घटती रही तो 2750 तक वहां आबादी समाप्त हो जाएगी। ऐसे में इन देशों से सीखने के बजाए हम भी अगर वही ग़लती करेंगे तो इसके भयानक परिणाम हमें भी भुगतने पड़ सकते हैं। 
आवश्यकता है कि समस्या का समाधान उसके वास्तविक कारण में सुधार से किया जाए। पूंजीवाद के कारण देश की अर्थव्यवस्था को कुछ सीमित लोगों के हाथों में जाने से रोका जाए और संसाधनों के वितरण की उचित व्यवस्था की जाए। इस्लाम की ज़कात व्यवस्था एक विकल्प देती है जिसपर विचार किया जाना चाहिए। दुनिया के सारे इंसान भाई-भाई हैं और उनके हक़ को उन तक पहुंचाना हर किसी का कर्तव्य है। ज़कात के प्रावधान में गरीबी दूर करने का अंतर्निहित तंत्र मौजूद है जिसमें दौलत का प्रवाह अमीरों से गरीबों की ओर होता है। जबकि पूंजीवादी में यह गरीबों से अमीरों की ओर होने के कारण ग़रीब सदा ग़रीब ही रहता है। बल्कि उसकी गरीबी में वृद्धि होती रहती है।  
अल्लाह ने इस संसार के लिए जो स्कीम बनाई है, उसमें छेड़-छाड़ करने से मानवता का हित न पहले कभी हुआ है और न अब होने वाला है।      
 

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