कैसे रुके आत्महत्या?

कैसे रुके आत्महत्या?

अभी दो दिन पहले 1 जुलाई २०१९ के अखबार में एक ऐसी ख़बर पढ़ी जिसने मुझे पूरी तरह से झिंझोड़ कर रख दिया। एक अत्यन्त सम्पन व्यक्ति, जो गुरुग्राम की एक बड़ी कम्पनी में डॉक्टर था, ने आत्महत्या कर ली। और इतना ही नहीं, आत्महत्या करने से पहले उसने अपने पूरे परिवार की हत्या भी कर दी। उस परिवार की आर्थिक सम्पन्नता का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। पत्नी एक स्कूल चलाती थीं, बेटी दिल्ली की एक विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी और बेटा स्कूल में पढ़ रहा था। मृत डॉक्टर की जेब से एक सुसाइड नोट मिला जिसपर आत्महत्या का कारण बताते हुए लिखा था कि, “मैं अपने परिवार को ठीक से नहीं चला पाया। जो कुछ भी हुआ, इसके लिए मैं स्वयं जिम्मेदार हूं।“  
आत्महत्या की देश की यह एकमात्र घटना नहीं है, लगभग रोज़ ही अख़बारों में इस प्रकार की घटनाओं की ख़बरें आती रहती हैं। जुलाई २०१८ में दिल्ली के बुराड़ी में हुई सामूहिक आत्महत्या की घटना ने तो पूरे देश को हिला कर रख दिया था जिसमें एक ही परिवार के ११ लोगों ने योजनाबद्ध तरीक़े से आत्महत्या की और कोई सुसाइड नोट भी नहीं छोड़ा। इससे पूर्व २०१६ में हैदराबाद विश्विद्यालय के दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या ने भी पूरे देश को हिला कर रख दिया था।
विश्व स्वास्थ संगठन डब्ल्यू एच ओ के आकड़ों पर आधारित इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 15-19 वर्ष के आयुवर्ग में मृत्यु का दूसरा सब से बड़ा कारण आत्महत्या है और विश्व में प्रतिवर्ष आत्महत्या करने वालो की संख्या 8 लाख तक पहुँचती है अथार्त हर 40 सेकंड में विश्व में कहीं न कहीं एक व्यक्ति स्वयं अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेता है। भारत में आत्महत्या की प्रवृति कितना भयानक रूप ले चुकी है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की विश्व में महिलाओं द्वारा की जाने वाली आत्महत्या की 1/3(एक तिहाई) घटनाएँ और पुरुषों की 1/4(एक चौथाई) घटनाएं भारत में ही होती हैं। एन सी आर बी के आकड़ों के अनुसार छात्रों में आत्महत्या की प्रवृति बहुत तेज़ी से बढ़ रही है और देश में प्रति घंटा एक छात्र अपने हाथों अपना जीवन समाप्त कर लेता है। इसी प्रकार किसानों में इस प्रवृति ने अत्यन्त विकराल रूप धारण कर लिया है और अनुमान है कि देश में प्रतिवर्ष १५००० किसान आत्महत्या कर रहे हैं। २०१८ में सरकार की ओर से क़र्ज़ माफ़ी की घोषणा के बाद भी इसमें कमी देखने में नहीं आई है। क्यों करते हैं लोग आत्महत्या? क्या होती है उनकी मानसिक दशा जो उन्हें इसके लिए प्रेरित करती है? किस प्रकार के सामाजिक और पारिवारिक दबाव होते हैं जो एक व्यक्ति को अपना जीवन समाप्त करने पर बाध्य कर देते हैं? इन सभी प्रश्नों के उत्तर सरलता से प्राप्त हो सकते थे यदि आत्महत्या के बाद मृतकों से संपर्क का कोई रास्ता होता। चूँकि यह असंभव है इसलिए इस सम्बन्ध में मनोविज्ञानिक, समाजशास्त्री व अन्य शोधकर्ताओं के समस्त उत्तर एवं निष्कर्ष मात्र अनुमान पर आधारित होते हैं या आत्महत्या करने वालों द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट पर। प्रसिद्ध मनोविज्ञानिक जेसी बेरिंग २०१८ में प्रकाशित अपनी पुस्तक “आत्मघाती: हम खुद को क्यों मारते हैं” में इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं, “किसी भी व्यक्ति को आत्महत्या की ओर ले जाने वाले विशिष्ट मुद्दे निश्चित रूप से उतने ही अलग-अलग होते हैं जितने की उनके डीएनए।“ यानि हर व्यक्ति का आत्महत्या करने का कारण दुसरे से भिन्न होता है। फ़िर भी मनोविज्ञानिकों ने जो कारण बताये हैं उनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं:-
1. भौतिक संपदा एवं सम्पन्नता को बढ़ाने में असफलता।
2. वित्तीय समस्याएँ
3. अकेलापन
4. डिप्रेशन
5. बीमारी
6. काम पर उत्पादक होने में असमर्थता
7. किसी प्रियजन की मृत्यु
8. साथियों द्वारा लगातार चिढ़ाया जाना
9. मानसिक या शारीरिक शोषण
10. तलाक अथवा परिवार में कलह
कारण इनमें से कोई भी हो, आत्महत्या करने वाला व्यक्ति निराशा की ऐसी चरम सीमा तक पहुँच जाता है की उसे अपने जीवन का अंत कर लेने के अतिरिक्त अपनी समस्याओं का कोई और समाधान नज़र नहीं आता। निराशा की यह अति उसमें सकारात्मक सोच की समस्त शक्ति को समाप्त कर देती है और नकारात्मकता उसपर ऐसी हावी हो जाती है की वह अपने जीवन के सुनहरे पलों को भी भुला बैठता है। जिन घटनाओं में दूसरों को आशा की किरण नज़र आ जाती है इसे निराशा और असफ़लता के अतिरिक्त कुछ नज़र नहीं आता। विडम्बना तो यह है की जो लोग आत्महत्या के प्रयत्न में असफ़ल रहे बाद में उनमें से अधिकतर का कहना था की वह अपनी वर्तमान अवस्था में प्रसन्न हैं और उन्हें अपने उस निर्णय पर पश्चाताप है। आत्महत्या का असफ़ल प्रयत्न करने वालों में से 80% आवेग को कारण बताते हैं, 24% कहते हैं की यह निर्णय उन्होंने मात्र 5 मिनट पूर्व ही लिया था जबकि 70% का कहना था की एक घंटा पूर्व ही उन्होंने अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय लिया था।
विश्व के अन्य देशों की तरह भारत में भी आत्महत्या के प्रयत्न को एक अपराध माना जाता था। आई पी सी की धारा 309 के अनुसार “जो भी कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा, और उस अपराध के करने के लिए कोई कार्य करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए सादा कारावास से जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।“ परन्तु २०१७ में इसे क़ानूनी अपराध के बजाए मानसिक रोग मानते हुए मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 में संशोधन किया गया और आत्महत्या को अपराधमुक्त कर दिया गया।
कानून की दृष्टि से किए गए समस्त प्रयत्नों के उपरान्त भी आत्महत्या रुकने का नाम नहीं ले रही है और इसमें दिन प्रति दिन बढ़ोतरी होती जा रही है। इंसानों की मानसिक दशा सुधारने और उनमें आशा की किरण जगाने में कानून से अधिक रोल धर्म का है और ऐसा माना जाता है की आत्महत्या की प्रवृत्ति को कम करने में धर्म एक सुरक्षात्मक प्रभाव डालता है। यहूदी धर्म में आत्महत्या करने वालों को वैसे तो तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है और ऐसा माना जाता है कि उनका अंतिम संस्कार यहूदी कब्रस्तान में नहीं किया जाना चाहिए परन्तु यहूदी इतिहास में कुछ सामूहिक आत्महत्या की ऐसी घटनाएं मिलती हैं जिन्हें उनका समाज अनुसरणीय और बड़े आदर और सम्मान का स्थान देता है। ईसाई धर्म में भी आत्महत्या को एक पाप के रूप में देखा जाता है पर इस बात को लेकर मतभेद है की क्या ऐसे व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होगी या नहीं। बुद्ध धर्म में हर प्रकार की हत्या को बुराई माना गया है इसलिए आत्महत्या को भी एक अस्वीकार्य कर्म के रूप में देखा जाता है हांलाकि कुछ विशेष घटनाओं को स्वीकृति प्रदान करने की बात भी पढ़ने को मिलती है। जैन धर्म पूर्ण रूप से अहिंसा पर आधारित है इसलिए इसमें भी आत्महत्या को हत्या का ही एक रूप माना जाता है। हिन्दू धर्म में आत्महत्या को अहिंसा के आदर्शों का उल्लंघन माना जाता है और कुछ शास्त्रों के अनुसार ऐसे व्यक्ति की आत्मा तब तक भटकती रहती है जब तक उसकी प्राकृतिक मृत्यु का समय नहीं हो जाता। दूसरी ओर हिन्दू धर्म अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति को लम्बे समय तक भोजन त्याग कर अपना जीवन समाप्त करने का अधिकार भी देता है और इसमें सती प्रथा भी रही है जिसे एक प्रकार की आत्महत्या ही की संज्ञा दी जा सकती है। 
इस्लाम में आत्महत्या को एक अक्षम्य पाप माना गया है। इस्लाम का मानना है की यह जीवन अल्लाह की अमानत है और इसे स्वयं समाप्त करने का अधिकार किसी इंसान को नहीं है। इस्लाम मृत्यु पश्चात एक अनन्तकालीन जीवन की धारणा प्रस्तुत करता है जिसमें हर व्यक्ति को उसके अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार पुरस्कृत या दण्डित किया जाएगा इसलिए आत्महत्या करने से किसी की समस्या हल नहीं होगी बल्कि सज़ा उसका इन्तेज़ार कर रही होगी। इस्लाम इस संसारिक जीवन को एक परीक्षा के रूप में देखता है और मानता है की यह परीक्षा किसी भी रूप मे हो सकती है – निराशा और असफलता के रूप में अथवा प्रसन्ता और सफ़लता के रूप में। इसलिए कठिन परिस्थितिओं में इंसान हताश व निराश होने के बजाए बहादुरी और दृढ़ता से उसका मुक़ाबला करे। इस्लाम उसे प्रोत्साहित करते हुए कहता है कि “अल्लाह किसी इंसान पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालता” और यह कि “हर कठिनाई के बाद आसानी है”। यही कारण है की अत्यन्त कठिन परिस्तिथियों में भी एक मुसलमान अल्लाह पर भरोसा करते हुए एक ओर जहाँ उससे सहायता की प्रार्थना करता है वहीँ दूसरी ओर धीरज के साथ उसका मुक़ाबला भी करता है। उसे पूर्ण विश्वास होता है की परीक्षा की यह घड़ी एक दिन अवश्य समाप्त होगी और सफ़लता उसके क़दम चूमेगी। और यदि उसे पूरा जीवन भी कठिनाइयों से जूझते हुए व्यतीत करना पड़ता है तो इसका अच्छा फ़ल उसे उस अनन्तकालीन जीवन में अवश्य प्राप्त होगा जो उसका वास्तविक गंतव्य है। 
यही कारण है की मुसलमानों में आत्महत्या की दर दूसरों की तुलना में काफी कम है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जहाँ आत्महत्या की अधिकतम दर 30.2 प्रति एक लाख है वहीँ मुस्लिम देशों जैसे कुवैत, दुबई, सऊदी अरब, मोरक्को, अल्जीरिया आदि में यह दर 2-4 के लगभग है। शोधकर्ताओं का मानना है की इसका कारण इस्लाम की शिक्षाएं है। अभी कुछ समय पूर्व जर्मनी की मैनहेम विश्विद्यालय द्वारा जारी एक सर्वे में पाया गया की मुसलमानों के जीवन में संतोष का स्तर दूसरों की तुलना में काफ़ी अधिक है। इसका श्रेय भी इस्लाम की शिक्षाओं को ही जाता है।
तेज़ी से बढती हुई आत्महत्या की घटनाओं पर रोक लगाने के सारे प्रयत्न जब असफ़ल होते प्रतीत हो रहे हैं तो मानवता की रक्षा और उसकी भलाई के लिए इस्लाम और उसकी शिक्षाओं का अध्ययन अवश्य किया जाना चाहिए।      

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