इस्लाम ने मुझे अपराधी जीवन से बचा लिया (रॉबी मेस्त्रच्ची)

इस्लाम ने मुझे अपराधी जीवन से बचा लिया...

ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन शहर में 1981 में जन्में रॉबी मेस्त्रच्ची ने अपने अपराधी जीवन को पूर्ण रूप से उस समय तिल्लांजलि दे दी, जब आठ वर्ष पूर्व उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने का निर्णय किया। उनके जीवन का आरंभ ही समस्याओं से हुआ। जब वह सात वर्ष के थे तब उनके माँ-बाप में अलगाव हो गया और उनकी माँ उन्हें लेकर अमरीका चली गईं। माँ ने तो दूसरा विवाह कर लिया पर रॉबी वहां के ग़लत संगत में पड़कर ड्रग्स के आदी हो गए। माँ को जब इनकी बुरी आदत का ज्ञान हुआ, तो वह इन्हें लेकर ऑस्ट्रेलिया वापस आ गईं।

उनका जीवन सुधारने के लिए माँ ने स्कूल में इनका नाम लिखा दिया, पर इनपर तो अमरीका वापस जाने की धुन सवार थी, इसलिए स्कूल जाना अधिक दिनों तक चल नहीं पाया। नौकरी करने का निर्णय लिया, पर शिक्षा के अभाव में अच्छी नौकरी संभव नहीं थी, इसलिए कुछ छोटे-मोटे काम करके ही समय काटना शुरू किया। ऑस्ट्रेलिया वापस आकर भी उनकी नशे की आदत नहीं छूट पाई थी और यह उस समय भी जारी रही जब 22 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। नशे के साथ उन्होंने अपराध की दुनिया में भी उस समय प्रवेश कर लिया, जब उनका अपनी पत्नी से अलगाव हो गया। और समय के साथ वह अपराध की दुनिया में पूरी तरह डूबते चले गए।

ऐसा नहीं है कि वह अपने अपराधी जीवन से प्रसन्न थे। उनका ह्रदय उनको कचोटता रहता था परन्तु इस जीवन से निकलने का कोई रास्ता नहीं था। कई-कई रात नशे और अपराध में न सो पाने के कारण उनका स्वास्थ भी ख़राब होने लगा था। उन्हें उस समय एक प्रकार की संतुष्टि हुई, जब 2007 में उन्हें दस महीने की जेल हो गई। जेल में नशे और अपराध पर तो रोक लगी ही साथ में ठीक भोजन लेने से उनके स्वास्थ में कुछ सुधार हो गया। पर जेल से बाहर आते ही वह पागलों की तरह फ़िर उसी अपराधी जीवन में लग गए।

जैसे-जैसे उनपर अपराध हावी होता जा रहा था, वैसे वैसे ही उनको अपने जीवन के ग़लत मार्ग पर जाने का आभास भी सताने लगा था। उनके ह्रदय में प्रश्न उठने लगे थे कि क्या मेरा यह जीवन इसी लिया है? क्या उद्देश्य है मेरे जीवन का? इन विचारों का दबाव जब अधिक हो होने लगा, तो उन्होंने स्वयं को बदलने का निर्णय लिया। लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने के साथ ही वह कभी कभी चर्च भी जाने लगे और वहीँ चर्च ने इन्हें ग़रीबों में भोजन पहुंचाने के काम में लगा दिया। तब उन्हें लगा की जीवन को बुराई से निकालकर अच्छे मार्ग पर डालना इतना कठिन नहीं है, और यह किया जा सकता है।

अच्छे लोगों में रहना अब रॉबी को अच्छा लगने लगा और धीरे-धीरे उनका झुकाव आध्यात्मिकता की ओर होने लगा। उन्हें ईश्वर में सदा विश्वास रहा था पर अब उसमें दृढ़ता आने लगी थी। वह कहते हैं कि कुरआन पढने की उनकी इच्छा पहले भी थी और अब ईसाई आध्यामिकता से संतुष्ट न हो पाने के कारण, यह काफ़ी प्रबल होने लगी थी। असंतुष्टि की इसी स्थिति में एक दिन वह अपने एक जानने वाले मुस्लिम दोस्त के साथ मस्जिद चले गए। मस्जिद के इमाम से बात करके और वहां पर लोगों को नमाज़ में सजदा करते देख रॉबी को अपने अन्दर असीम शान्ति का एहसास हुआ और ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वह अपने घर आ गए हों। मुस्लिम्स का ड्रग्स और नशे से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध न होने से वह बहुत प्रभावित हुए और अपने पिछले जीवन पर उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ। उसी मस्जिद में, एक दिन, उन्होंने स्वयं को पूर्णरूप से परिवर्तित करते हुए, इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। उनके जीवन में आये परिवर्तन को देखकर, तीन महीने बाद, उनकी माँ ने भी इस्लाम स्वीकार कर लिया। 

 

                 

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