विश्वसनीय व्यक्तित्व (अल-अमीन)

विश्वसनीय व्यक्तित्व (अल-अमीन)

● सुनहरे साधन
इस्लाम का राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था से सीधा संबंध नहीं है, बल्कि यह संबंध अप्रत्यक्ष रूप में है और जहां तक राजनैतिक और आर्थिक मामले इन्सान के आचार-व्यवहार को प्रभावित करते हैं, उस सीमा में दोनों क्षेत्रों में निस्सन्देह उसने कई अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं। प्रोफ़ेसर मेसिंगनन के अनुसार, ‘‘इस्लाम दो प्रतिवू$ल अतिशयों के बीच संतुलन स्थापित करता है और चरित्र-निर्माण का, जो कि सभ्यता की बुनियाद है, सदैव ध्यान रखता है।’’ इस उद्देश्य को प्राप्त करने और समाज-विरोधी तत्वों पर क़ाबू पाने के लिए इस्लाम अपने विरासत के क़ानून और संगठित एवं अनिवार्य ज़कात की व्यवस्था से काम लेता है। और एकाधिकार (इजारादारी Monopoly), सूदख़ोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर क़ब्ज़ा कर लेने, जमाख़ोरी (Hoarding) द्वारा बाज़ार का सारा सामान ख़रीदकर क़ीमतें बढ़ाने के लिए कृत्रिम अभाव पैदा करना, इन सब कामों को इस्लाम ने अवैध घोषित किया है। इस्लाम में जुआ भी अवैध है। जबकि शिक्षा-संस्थाओं, इबादतगाहों तथा चिकित्सालयों की सहायता करने, कुएँ खोदने, अनाथालय स्थापित करने को पुण्यतम काम घोषित किया। कहा जाता है कि अनाथालय की स्थापना का आरंभ पैग़म्बरे-इस्लाम की शिक्षा से ही हुआ। आज का संसार अपने अनाथालय की स्थापना के लिए उसी पैग़म्बर का आभारी है, जो कि ख़ुद अनाथ था। कारलायल पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहता है—
‘‘ये सब भलाइयां बताती हैं कि प्रकृति की गोद में पले-बढ़े इस मरुस्थलीय पुत्र के हृदय में, मानवता, दया और समता के भाव का नैसर्गिक वास था।’’
एक इतिहासकार का कथन है कि किसी महान व्यक्ति की परख तीन बातों से की जा सकती है—
1. क्या उसके समकालीन लोगों ने उसे साहसी, तेजस्वी और सच्चे आचरण का पाया?
2. क्या उसने अपने युग के स्तरों से ऊँचा उठने में उल्लेखनीय महानता का परिचय दिया?
3. क्या उसने सामान्यतः पूरे संसार के लिए अपने पीछे कोई स्थाई धरोहर छोड़ी?
इस सूची को और लंबा किया जा सकता है, लेकिन जहाँ तक पैग़म्बर मुहम्मद का संबंध है वे जाँच की इन तीनों कसौटियों पर पूर्णतः खरे उतरते हैं। अन्तिम दो बातों के संबंध में कुछ प्रमाणों का पहले की उल्लेख किया जा चुका है।
इन तीन कसौटियों में पहली है, क्या पैग़म्बरे-इस्लाम को आपके समकालीन लोगों ने तेजस्वी, साहसी और सच्चे आचरण वाला पाया था?
● बेदाग़ आचरण
ऐतिहासिक दस्तावेज़ें साक्षी हैं कि क्या दोस्त, क्या दुश्मन, हज़रत मुहम्मद के सभी समकालीन लोगों ने जीवन के सभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैग़म्बरे-इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, आपकी बेदाग़ ईमानदारी, आपके महान नैतिक सद्गुणों तथा आपकी अबाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त आपकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है। यहाँ तक कि यहूदी और वे लोग जिनको आपके संदेश पर विश्वास नहीं था, वे भी आपको अपने झगड़ों में पंच या मध्यस्थ बनाते थे, क्योंकि उन्हें आपकी निरपेक्षता पर पूरा यक़ीन था। वे लोग भी जो आपके संदेश पर ईमान नहीं रखते थे, यह कहने पर विवश थे—
‘‘ऐ मुहम्मद, हम तुमको झूठा नहीं कहते, बल्कि उसका इन्कार करते हैं जिसने तुमको ‘ग्रंथ’ दिया तथा जिसने तुम्हें रसूल बनाया।’’
वे समझते थे कि आप पर किसी (जिन्न आदि) का असर है, जिससे मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने आप पर सख़्ती भी की। लेकिन उनमें जो बेहतरीन लोग थे, उन्होंने देखा कि आपके ऊपर एक नई ज्योति अवतरित हुई है और वे उस ज्ञान को पाने के लिए दौड़ पड़े। पैग़म्बरे-इस्लाम की जीवनगाथा की यह विशिष्टता उल्लेखनीय हैकि आपके निकटतम रिश्तेदार, आपके प्रिय चचेरे भाई, आपके घनिष्ट मित्र, जो आपको बहुत निकट से जानते थे, उन्होंने आपके पैग़ाम की सच्चाई को दिल से माना और इसी प्रकार आपकी पैग़म्बरी की सत्यता को भी स्वीकार किया।
पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) पर ईमान ले आने वाले ये कुलीन शिक्षित एवं बुद्धिमान स्त्रियाँ और पुरुष आपके व्यक्तिगत जीवन से भली-भाँति परिचित थे। वे आपके व्यक्तित्व में अगर धोखेबाज़ी और फ्रॉड की ज़रा-सी झलक भी देख पाते या आपमें धनलोलुपता देखते या आपमें आत्म-विश्वास की कमी पाते तो आपके चरित्र-निर्माण, आत्मिक जागृति तथा समाजोद्धार की सारी आशाएँ ध्वस्त होकर रह जातीं।
इसके विपरीत हम देखते हैं कि अनुयायियों की निष्ठा और आपके प्रति उनके समर्थन का यह हाल था कि उन्होंने स्वेच्छा से अपना जीवन आपको समर्पित करके आपका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। उन्होंने आपके लिए यातनाओं और ख़तरों को वीरता और साहस के साथ झेला, आप पर ईमान लाए, आपका विश्वास किया, आपकी आज्ञाओं का पालन किया और आपका हार्दिक सम्मान किया और यह सब कुछ उन्होंने विरोधियों की ओर से दिल दहला देने वाली यातनाओं के बावजूद किया तथा सामाजिक बहिष्कार से उत्पन्न घोर मानसिक यंत्रणा को शान्तिपूर्वक सहन किया। यहाँ तक कि इसके लिए उन्होंने मौत तक की परवाह नहीं की। क्या यह सब कुछ उस हालत में भी संभव होता यदि वे अपने नेता में तनिक भी भ्रष्टता, छल-कपट, स्वार्थ या अनैतिकता पाते?
● पैग़म्बर से अमर प्रेम
आरम्भिक काल में इस्लाम स्वीकार करने वालों के ऐतिहासिक वृत्तांत पढ़िए तो इन बेकु़सूर मर्दों और औरतों पर ढाए गए ग़ैर-इन्सानी अत्याचारों को देखकर कौन-सा दिल है जो रो न पड़ेगा? एक मासूम गर्भवती औरत सुमैया की, बेरहमी के साथ गर्भ पर बरछे मार-मार कर हत्या कर दी गई। एक मिसाल यासिर की भी है, जिनकी टांगों को दो ऊँटों से बाँध दिया गया और फिर उन ऊँटों को विपरीत दिशा में हाँका गया। ख़ब्बाब-बिन-अरत को धधकते हुए कोयलों पर लिटाकर निर्दयी ज़ालिम उनके सीने पर खड़ा हो गया, ताकि वे हिल-डुल न सकें, यहाँ तक कि उनकी खाल जल गई और चर्बी पिघलकर निकल पड़ी। और खब्बाब-बिन-अदी के गोश्त को निर्ममता से नोच-नोचकर तथा उनके अंग काट-काटकर उनकी हत्या की गई। इन यातनाओं के दौरान उनसे पूछा गया कि क्या अब वे यह न चाहेंगे कि उनकी जगह पर पैग़म्बर मुहम्मद होते? (जो कि उस वक़्त अपने घर वालों के साथ अपने घर में थे) तो पीड़ित ख़ब्बाब ने ऊँचे स्वर में कहा कि पैग़म्बर मुहम्मद को एक कांटा चुभने की मामूली तकलीफ़ से बचाने के लिए भी वे अपनी जान, अपने बच्चे एवं परिवार, अपना सब कुछ क़ुरबान करने के लिए तैयार हैं। इस तरह के दिल दहलाने वाले बहुत-से वाक़िये पेश किए जा सकते हैं, लेकिन ये सब घटनाएँ आख़िर क्या सिद्ध करती हैं? ऐसा कैसे हो सका कि इस्लाम के इन बेटों और बेटियों ने अपने पैग़म्बर के प्रति केवल निष्ठा ही नहीं दिखाई, बल्कि उन्होंने अपने शरीर, हृदय और आत्मा का नज़राना भी उन्हें पेश किया? पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) के प्रति उनके निकटतम अनुयायियों की यह दृढ़ आस्था और विश्वास, क्या उस कार्य के प्रति, जो पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) के सुपुर्द किया गया था, उनकी ईमानदारी, निष्ठा तथा तन्मयता का अत्यंत उत्तम प्रमाण नहीं है?
● उच्च सामर्थ्यवान अनुयायी
ध्यान रहे कि ये लोग न तो निचले दर्जे के लोग थे और न कम अक़ल वाले। आपके मिशन के आरम्भिक काल में जो लोग आपके चारों ओर जमा हुए वे मक्का के श्रेष्ठतम लोग थे, उसके फूल और मक्खन, ऊँचे दर्जे के, धनी और सभ्य लोग थे। इनमें आपके ख़ानदान और परिवार के क़रीबी लोग भी थे जो आपकी अन्दरूनी और बाहरी ज़िन्दगी से भली-भाँति परिचित थे। आरम्भ के चारों ख़लीफ़ा भी, जो कि महान व्यक्तित्व के मालिक हुए, इस्लाम के आरम्भिक काल ही में इस्लाम में दाख़िल हुए।
‘इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका’ में उल्लिखित है—
‘‘समस्त पैग़म्बरों और धार्मिक क्षेत्र के महान व्यक्तित्वों में मुहम्मद सबसे ज़्यादा सफल हुए हैं।’’
लेकिन यह सफलता कोई आकस्मिक चीज़ न थी। न ही ऐसा है कि यह आसमान से अचानक आ गिरी हो, बल्कि यह उस वास्तविकता का फल थी कि आपके समकालीन लोगों ने आपके व्यक्तित्व को साहसी और निष्कपट पाया। यह आपके प्रशसंनीय और अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व का फल था।
सत्यवादी (अस-सादिक़)
● मानव-जीवन के लिए उत्कृष्ट नमूना
पैग़म्बर मुहम्मद के व्यक्तित्व की सभी यथार्थताओं को जान लेना बड़ा कठिन काम है। मैं (प्रोफ़ेसर रामकृष्ण राव) तो उसकी बस कुछ झलकियाँ ही देख सका हूँ। आपके व्यक्तित्व के कैसे-कैसे मनभावन दृश्य निरंतर नाटकीय प्रभाव के साथ सामने आते हैं। हज़रत मुहम्मद कई हैसियत से हमारे सामने आते हैं—मुहम्मद—पैग़म्बर, मुहम्मद—जनरल, मुहम्मद—शासक, मुहम्मद—योद्धा, मुहम्मद—व्यापारी, मुहम्मद—उपदेशक, मुहम्मद—दार्शनिक, मुहम्मद—राजनीतिज्ञ, मुहम्मद—वक्ता, मुहम्मर—समाज-सुधारक, मुहम्मद—अनाथों के पोषक, मुहम्मद—ग़ुलामों के रक्षक, मुहम्मद—स्त्री वर्ग का उद्धार करने और उनको बंधनों से मुक्त कराने वाले, मुहम्मद—न्यायाधीश, मुहम्मद—सन्त। इन सभी महत्वपूर्ण भूमिकाओं और मानव-कार्य के क्षेत्रों में आपकी हैसियत समान रूप से एक महान नायक की है।
अनाथ-अवस्था अत्यंत बेचारगी और असहाय स्थिति का दूसरा नाम है और इस संसार में आपके जीवन का आरंभ इसी स्थिति से हुआ। राजसत्ता इस संसार में भौतिक शक्ति की चरम सीमा होती है और आप शक्ति की यह चरम सीमा प्राप्त करके दुनिया से विदा हुए। आपके जीवन का आरंभ एक अनाथ बच्चे के रूप में होता है, फिर हम आपको एक सताए हुए मुहाजिर (शरणार्थी) के रूप में पाते हैं और आख़िर में हम यह देखते हैं कि आप एक पूरी क़ौम के दुनियावी और रूहानी पेशवा और उसकी क़िस्मत के मालिक हो गए हैं। आपको इस मार्ग में जिन आज़माइशों, प्रलोभनों, कठिनाइयों और परिवर्तनों, अंधेरों और उजालों, भय और सम्मान, हालात के उतार-चढ़ाव आदि से गुज़रना पड़ा, उन सब में आप सफल रहे। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपने एक आदर्श पुरुष की भूमिका निभाई। उसके लिए आपने दुनिया से लोहा लिया और पूर्ण रूप से विजयी हुए। आपके कारनामों का संबंध जीवन के किसी एक पहलू से नहीं है, बल्कि वे जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त हैं।
● मुहम्मद : महानतम व्यक्तित्व
उदाहरणस्वरूप, अगर महानता इस पर निर्भर करती है कि किसी ऐसी जाति का सुधार किया जाए जो सर्वथा बर्बरता और असभ्यता में ग्रस्त हो और नैतिक दृष्टि से वह अत्यंत अंधकार में डूबी हुई हो तो वह शक्तिशाली व्यक्ति हज़रत मुहम्मद हैं, जिन्होंने अरबों जैसी अत्यंत पस्ती में गिरी हुई क़ौम को ऊँचा उठाया, उसे सभ्यता से सुसज्जित करके कुछ से कुछ कर दिया। जिन्होंने उसे दुनिया में ज्ञान और सभ्यता का प्रकाश पै$लाने वाली क़ौम बना दिया। इस तरह आपका महान होना पूर्ण रूप से सिद्ध होता है। यदि महानता इसमें है कि किसी समाज के परस्पर विरोधी और बिखरे हुए तत्वों को भाईचारे और दयाभाव के सूत्रों में बाँध दिया जाए तो मरुस्थल में जन्मे पैग़म्बर निस्सन्देह इस विशिष्टता और प्रतिष्ठा के पात्र हैं। यदि महानता उन लोगों का सुधार करने में है जो अंधविश्वासों तथा इस प्रकार की हानिकारक प्रथाओं और आदतों में ग्रस्त हों तो पैग़म्बरे-इस्लाम ने लाखों लोगों को अंधविश्वासों और बेबुनियाद भय से मुक्त किया। अगर महानता उच्च आचरण पर आधारित होती है तो शत्रुओं और मित्रों दोनों ने मुहम्मद साहब को ‘‘अल-अमीन’’ और ‘‘अस-सादिक़’’ अर्थात् विश्वसनीय और सत्यवादी स्वीकार किया है। अगर एक विजेता महानता का पात्र है तो आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अनाथ और असहाय और साधारण व्यक्ति की स्थिति से उभरे और ख़ुसरो और क़ैसर की तरह अरब उपमहाद्वीप के स्वतंत्र शासक बने। आपने एक ऐसा महान राज्य स्थापित किया जो चौदह सदियों की लंबी मुद्दत गुज़रने के बावजूद आज भी मौजूद है। और अगर महानता का पैमाना वह समर्पण है जो किसी नायक को उसके अनुयायियों से प्राप्त होता है तो आज भी सारे संसार में पै$ली करोड़ों आत्माओं को मुहम्मद (सल्ल॰) का नाम जादू की तरह सम्मोहित करता है।
● निरक्षर ईशदूत
हज़रत मुहम्मद ने एथें�

  • 8802281236

  • ई मेल : islamdharma@gmail.com